छत्तीसगढ़:न किताबें, न यूनिफॉर्म, न मिड-डे मील. स्कूल में छात्रों को नहीं मिल रहा उनका ‘हक’

गरियाबंद में आदिवासी विकासखण्ड मैनपुर के शासकीय प्राथमिक शाला ओंकारपारा के हालात बदतर हो गए हैं. जहां 5 छात्र-छात्राओं के नाम दर्ज हैं और उन्हें पढ़ाने के लिए 2 टीचरों को पदस्थ किया गया है.
यहां स्कूल भवन भी चिंता का विषय है जिसकी हालत इतनी जर्जर हो चुकी है कि दीवार और छत से जंग लगे सरिये दिखाई देने लगे हैं. बच्चों को यहां न तो मध्याह्न भोजन मिल रहा है न ही किताबें और अन्य सुविधाएं. शिक्षा विभाग की एक बड़ी लापरवाही बच्चों के भविष्य के साथ नाइंसाफी कर रही है.
ओंकारपारा स्कूल के छात्र-छात्राओं का भविष्य अंधकार में पड़ता दिख रहा है जिसकी मुख्य वजह बताई जा रही है यू- डाईस कोड (Unified District Information System for Education) बंद होना. यह वह कोड है जिसके जरिए सरकारी स्कूलों में सभी सुविधाएं भेजी जाती हैं. इस स्कूल का यू डाईस कोड कैसे बंद हुआ है इसकी जानकारी भी स्कूल को नहीं दी गई. न तो स्कूल को मर्ज करने का जिक्र किया गया है. इसमें सबसे बड़ी लापरवाही स्कूल शिक्षा विभाग की मानी जा रही है. शाला प्रबंधन के द्वारा कई बार शिक्षा विभाग के जिम्मेदारों को यू डाईस कोड शुरू करने के लिए लिखित आवेदन दिया गया है. उच्च अधिकारी सोए हुए हैं और इस मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है.
नहीं मिल रहा छात्रों को उनका हक
सबसे बड़ी हैरानी की बात यह है कि यू डाइस कोड नहीं होने से स्कूली छात्र-छात्राओं को ना तो मध्याह्न भोजन नसीब हो रहा है और ना स्कूली गणवेश और ना पाठ्य पुस्तक. ग्राम पंचायत गुरजीभांटा ( T) से ओंकारपारा की दूरी 4 किलोमीटर है. घने जंगल होने के कारण स्कूल को मर्ज भी नहीं कराया जा सकता. हालांकि इस पूरे मामले पर अब बच्चों के अभिभावक भी काफी आक्रोशित दिख रहे हैं.
अभिभावक भी उठा रहे सवाल
टीचर, छात्र और अभिभावकों के मन में बस यही सवाल है कि पांच बच्चों की संख्या वाले ओंकारपारा स्कूल के बच्चों को कब तक सरकार की मूलभूत योजनाओं से वंचित होना पड़ेगा? वह बार-बार पूछ रहे हैं कि स्कूल में मध्यान भोजन, स्कूली गणवेश और पाठ्यपुस्तक क्यों नहीं नसीब हो रही? यह हैरान कर देने वाली बात है. वहीं पूरे मामले पर संकुल समन्वयक पदुसिंह नागेश ने बताया कि वे उच्च अधिकारी को ओंकारपारा की समस्याओं के बारे अवगत करवा चुके हैं. अब देखना होगा कब तक इन आदिवासी छात्र छात्राओं को इनके अधिकार नसीब हो पाते हैं.
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