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सारंगढ़

सारंगढ़ जिले मे परंपरा और संस्कृति से सराबोर हरेली तिहार सम्पन्न.. गांव की गलियों में गेड़ी पर चढ़े दिखे बच्चे, तो बुजुर्गों ने की कृषि उपकरणों की पूजा.

 

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सारंगढ़ । कृषि उपकरणों की पूजा, गेड़ी तिहार, पशुधन के सम्मान का पर्व है हरेली अमावस हरेली त्यौहार यानी सावन मास की अमावस्या, जब वसुंधरा हरित परिधान ओढ़ लेती है , गाँव- गाँव के खेत खलिहान, नदी, तालाब जल से छलक छलक उठते हैं, धान के बिरवा हर ओर हरे-हरे नजर आने लगते हैं, हवाओं के साथ लहराते दिख पड़ते हैं, खेती- किसानी का काम संपन्न हो जाता है और तब मनता है छत्तीसगढ का पहला त्यौहार हरेली । छग की परंपरा, संस्कृति , आस्था को संजोकर जन कल्याण की भावना को लिए मनाई जाती है हरेली ।

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हरेली के दिन सुबह सुबह हर दरवाजे नीम की एक डंगाल खोंची जाती है, वहीं गाँव के लुहार देहरी पर एक कील ठोंकते हैं , किसी अनिष्ट की संभावना से बचने यह परंपरा निभाई जाती है । गांव का हर वर्ग हरेली में अपनी अपनी भूमिका निभाता है । राऊत, बढ़ई, बैगा, गुनिया, अपनी भागीदारी निभाते हैं । सुबह से ही हर ओर उल्लास और उमंग से भरे लोग और मस्ती से ठिठोली करते गेड़ी चढ़ गाँव की गलियों में दौड़ लगाते बच्चों की टोली का शोर सुन पड़ता है । धान के लहलहाते खेतों को देख महसूस होता है कि – हर ओर हरियाली फैली हुई है आकाश में बादलों को गर्जना, कहीं रिमझिम बरसते मेघ तो कहीं दूर कौंधती बिजली मानो प्रकृति भी हरेली का स्वागत करने आतुर हो उठीं हो ।

पर्यावरण संरक्षण , संवर्धन का संदेश देते, वहीं कर्म को बल देते, गाँव में आपसी सौहार्द, को अपने में समेटता हुआ मनाया जाती है हरेली । अपने श्रम सीकरों से फसलों के लिए किसान अपने कृषि औजारों, गोधन की साज संभाल करते हैं । अनजाने अनिष्टों से बचने के लिए अनुष्ठान करते हैं । इसी के साथ उल्लासित हो मनाते हैं हरेली त्यौहार , पशु कल्याण, गोधन संस्कृति गांव को आर्थिक स्वालंबन देती है ।गोधन संवर्धन के राऊत आज भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जो सतत पशुओं के कल्याण में लगे रहते हैं । हरेली के पहले ही जंगल में जाकर भांवर पेड़ की छाल बटोरते हैं । दशमूल कंद को खोदकर लाते हैं, वनौषधि से काढ़ा तैयार किया जाता है । हरेली की सुबह सांहड़ा देव की पूजा अर्चना कर काढा का वितरण किया जाता है । ग्रामीण अपने गाय, बैल, भैस को आटे की लोदी खिलाते हैं और काढा पिलाते हैं । यह औषधि पशुधन को बीमारियों से बचाती है,राऊत सभी को शुभकामना देते हुए कहते हैं । धन दुगानी पावय भझ्या पावय हमर असीसे, नाती पूत ले घर भरय जीर्यों लात बरीसे का आशीष देते हैं।

प्राकृतिक, देवीय, मानवीय संकटों से गाँव की रक्षा के लिए बैगा की अपनी भूमिका निभाता है । गांव का बैगा ही संक्रामक रोगों, शुत्रुओं और कष्टो से रक्षा करने में समर्थ होता है, गांव बंद किया जाता है और रात में सवनाई चलाई जाती है। घर की दीवारों पर गोबर से पुतरा पुतरी अंकित किए जाते हैं । पशुधन को खुरहा चपका बीमारी से बचाने के लिए अर्जुन के दस नामों का उल्लेख किया जाता है। पौराणिक कथा अनुसार महाभारत काल में अर्जुन विराटनगर में वृहनल्ला बने थे अर्जुन जब अपने असली रूप में वापस आये तब विराटनगर में फैली पशुओं की बीमारी अपने आप समाप्त हो गयी इस घटना को ध्यान में रखकर अर्जुन का नाम स्मरण किया जाता है ।
कृषि उपयोगी औजारों को धोना खेती का काम पूरा हो जाता है फिर नागर, कुदारी, रापा, बसुला, टंगिया, आरी, भंवारी, साबर, चटवार, हंसिया, बिंधना उपकरणों को निकालकर धोया जाता है । ग्राम- देवताओं और लोक देवताओं के साथ इनकी भी पूजा-अर्चना की जाती है ।चीला रोटी का भोग लगाया जाता है । कृषि औजार किसानों के अंलकार हैं इनकी सुरक्षा उतना ही जरूरी है जितनी आभूषण की कहा गया है,नागर तुतारी टंगिया कुदारी किसान के गहना, अऊ किसनिन के रापा गैंती झऊंहा नहना है ।

लोक देवताओं के बारे में मान्यता है कि – ये ग्रामीणों का दुख दूर करते हैं हर गांव के अपने एक अलग देवी- देवता होते हैं । जिनकी पूजा अर्चना की जाती है । गांवों में तो हरेली से लेकर ऋषि पंचमी तक तंत्र मंत्र सीखने की प्रक्रिया भी चलती रहती है । जिसकी शुरुआत हरेली से होती है । बच्चों का उत्साह द्विगुणित करने के लिए इसी दिन बांस से बनी गेंड़ी चढ़ने की परंपरा निभाई जाती है ।कीचड़ पानी से सराबोर हुई गांव की गलियों में गेड़ी पर चढ़े लोग दिखते हैं । हरेली त्यौहार में गेड़ी दौड़ प्रतियोगिता आयोजित होती है । कहीं गेंड़ी नृत्य प्रदर्शन किया जाता है । महीने भर गेंड़ी का आनंद लेने के बाद इसे विसर्जित कर दिया जाता है । हरेली पर गांव के चौपाल में पारंपरिक रूप से धार्मिक अनुष्ठान होता है । कहीं आल्हा सुनाई देती है, तो कहीं रामायण की स्वर लहरियां गूंज उठती हैं ।लोक मान्यता है कि – जब तक हरियाली रहेगी, तब तक किसानों के खेत आबाद रहेंगे। जंगल हरे-भरे रहेंगे जंगल हरे रहेंगे, तो उनके पशुओं के उत्तम स्वास्थ्य के लिए दिव्य रसायन की प्राप्ति होती रहेगी । हर हमेशा हरियाली बनी रहे, जो सब का पोषण करती रहे । ऐसी परंपराओं को संजोए हरेली त्यौहार मनाया गया है ।

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