झारखंड

संविदा कर्मचारियों को फिर लगा बड़ा झटका, नहीं होंगे रेगुलर, नियमितीकरण के प्रस्ताव को विभाग ने ठुकराया….

झारखंड के ग्रामीण विकास विभाग में कार्यरत संविदा कर्मचारियों को एक बार फिर एक बड़ा झटका लगता दिखाई दे रहा है। विभाग ने संविदा पर नियुक्त 192 कर्मचारियों की सेवा नियमित करने से इनकार कर दिया है। इन कर्मचारियों ने हाइकोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए नियमित करने का अनुरोध किया था, लेकिन अब विभाग ने नियमितकरण के अनुरोध को ठुकारा दिया है। ग्रामीण विकास विभाग के इस फैसले से सरकार के विभिन्न विभागों में संविदा पर कार्यरत कर्मचारियों की सेवा नियमित करने से इनकार किये जाने की आशंका जतायी जा रही है। अगर ऐसा होता है तो यह किसी झटके से कम नहीं होगा।

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो राज्य के विभिन्न विभागों में संविदा पर कार्यरत कर्मचारियों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। 2018 से 2023 तक 69 रिट याचिकाएं लगाई गई थी। इन सभी याचिकाओं में सुप्रीम कोर्ट द्वारा ‘कर्नाटक सरकार बनाम उमा देवी’ और ‘नरेंद्र कुमार तिवारी बनाम झारखंड सरकार’ के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये फैसले के आलोक में लगातार 10 वर्ष तक काम करने के आधार पर सेवा नियमित करने की मांग की गयी थी। न्यायाधीश एसएन पाठक की अदालत में हुई मामले की सुनवाई दौरान राज्य सरकार की ओर से सेवा नियमित करने की मांग का विरोध किया गया। मामले की सुनवाई के बाद हाइकोर्ट ने 15 जनवरी 2024 को अपना फैसला सुनाया। इसके बाद संविदा कर्मचारियों ने नियमित करने के लिए अपने-अपने विभागों में आवेदन दिया था।

मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि संविदा पर नियुक्त मनरेगा कर्मचारियों की ओर से दायर रिट याचिका में 192 लोग शामिल थे। मनरेगा आयुक्त ने इनके आवेदनों पर विचार करने के बाद उनकी सेवा नियमित करने से इनकार कर दिया है। इस सिलसिले में मनरेगा आयुक्त द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि उमा देवी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कट ऑफ डेट 10/4/2006 निर्धारित की है। जबकि, मनरेगा कर्मचारियों की नियुक्ति संविदा के आधार पर 4/6/2007 को जारी संकल्प के आलोक में की गयी है। नियुक्ति की यह तिथि उमा देवी मामले में निर्धारित कट ऑफ डेट के बाद का है। इसलिए उमा देवी के फैसले के आलोक में उनकी सेवा नियमित नहीं की जा सकती है। दूसरी बात यह कि संविदा के आधार पर इनकी नियुक्ति पारदर्शी तरीके से की गयी है। नियुक्ति में किसी तरह की अनियमितता नहीं है। उमा देवी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकृत पदों पर अनियमित तरीके से नियुक्त कर्मचारियों की सेवा नियमित करने का निर्देश दिया है। मनरेगा आयुक्त के आदेश में यह भी कहा गया है कि मनरेगा एक केंद्र प्रायोजित योजना है। इस योजना में संविदा के आधार पर ही नियुक्ति का प्रावधान है। मनरेगा में संविदा पर नियुक्ति के लिए सृजित पद अस्थायी प्रकृति के हैं। राज्य में यह योजना उस वक्त तक जारी रहेगी, जब तक केंद्र सरकार चाहेगी। इसलिए राज्य सरकार अस्थायी पदों पर संविदा के आधार पर नियुक्त कर्मचारियों के नियमित नहीं कर सकता है।

क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला
कर्नाटक सरकार बनाम उमा देवी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नियमित पद पर अनियमित तरीके से संविदा पर नियुक्त वैसे कर्मचारियों की सेवा नियमित करने का निर्देश दिया था, जिन्होंने 10 साल की साल की सेवा पूरी कर ली हो। साथ ही अदालत ने इसके लिए कट ऑफ डेट (10/4/2006) निर्धारित कर दी थी कि ऐसे लगातार नहीं होता रहे। नरेंद्र कुमार तिवारी बनाम राज्य सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह पाया था कि अगर उमा देवी के फैसले और कट ऑफ डेट (10/4/2006) को आधार बनाया जाये, तो झारखंड में संविदा पर नियुक्त कर्मचारियों की सेवा नियमितिकरण संभव नहीं होगा। अदालत ने इस स्थिति के मद्देनजर राज्य सरकार द्वारा तैयार ‘सेवा नियमितिकरण नियमावली-2015’ और ‘संशोधित नियमावली-2019’ के लागू होने की तिथि के आधार पर सेवा नियमितिकरण के मुद्दे पर सहानुभूति पूर्वक विचार करने का निर्देश दिया था।

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