रायगढ़: डीएपी, यूरिया की कलाबाजारी चरम पर… खाद की कलाबाजारी रोकने पुसौर की दो दुकानों में कार्रवाई के दौरान जिले के सबसे बड़े डीलर का आया था नाम, कृषि विभाग ने दबाई रिपोर्ट…!

रायगढ़। खाद को लेकर प्रशासन अभी भी नहीं चेता है। किसान लूट रहा है लेकिन मजाल है कि कालाबाजारी पर कोई कार्रवाई हो जाए। राजस्व विभाग ने एक कार्रवाई की थी जिसमें जिले के सबसे बड़े थोक डीलर का नाम आया। इस रिपोर्ट को भी कृषि विभाग भी दबाकर बैठ गया है। थोक डीलर को बचाने के लिए कोशिश शुरू हो गई है। किसानों को ज्यादा कीमत पर डीएपी और यूरिया खरीदना पड़ता है, इसके लिए जितने जिम्मेदार कालाबाजारी करने वाले व्यापारी हैं, उतने ही जिम्मेदार कृषि विभाग के अधिकारी भी हैं। सालों से जमाखोरी कर रहे डीलरों से सबकी सेटिंग है। जांच के लिए टीम के निकलने के पहले ही डीलर को संदेश भेज दिया जाता है। सामान्य निरीक्षण करके जांच पूरी कर ली जाती है। अब जिले में खाद की किल्लत हो चुकी है। प्राइवेट डीलर जमकर वसूली कर रहे हैं। जिले में 10350 टन डीएपी की तुलना में 7415 टन का भंडारण हो चुका है जो पूरा बांटा भी जा चुका है। अब डीएपी का स्टॉक जीरो है।
यूरिया का लक्ष्य 22400 टन है जिसमें से 19713 टन का भंडारण हो चुका है। इसमें से करीब 800 टन ही बांटना शेष है। यह आंकड़ा केवल सहकारी समितियों का है। इस साल जितना भी रैक लगा है उसमें से 72 प्रश डीएपी समितियों को मिला है। 38 प्रश डीएपी निजी व्यापारियों को मिला है। एनपीके का हाल ज्यादा खराब है। 5100 टन के टारगेट की तुलना में 199 टन ही भंडारण हो सका है। निजी व्यापारियों पर कार्रवाई करने में कृषि विभाग नाकाम रहा है। पिछले दिनों एसडीएम रायगढ़ और तहसीलदार पुसौर ने पुसौर के दो दुकानों में ज्यादा कीमत पर डीएपी बेचते हुए पकड़ा था। दोनों दुकान संचालकों ने बयान में सारंगढ़ के अग्रवाल का नाम लिया था। उन्हीं से पुसौर की दुकानों में ज्यादा कीमत में डीएपी सप्लाई हुआ था। अब तक कृषि विभाग मामले में कार्रवाई नहीं कर सका है केवल दोनों दुकानों को 21 दिनों के लिए सील कर दिया है।
किल्लत होने पर खुलते हैं गोदाम
समितियों में खाद का भरपूर स्टॉक रहते तक निजी व्यापारी अपना गोदाम बंद रखते हैं। जैसे ही किसान की जरूरत बढ़ती है, व्यापारी ज्यादा कीमत में बेचता है । खरसिया और सारंगढ़ से ही पूरे जिले में खाद का रेट नियंत्रित होता है। अभी पूरे जिले में डीएपी ज्यादा रेट पर बेचने का कारोबार चरम पर है। इस पर कोई लगाम लगाने वाला नहीं है। जब तक बड़े डीलरों की मनमानी नहीं रुकेगी तब तक जमाखोरी और कालाबाजारी पर रोक नहीं लग सकती।
हर साल खरीफ सीजन खत्म होने के समय एक-दो कार्रवाई की जाती है। जब खाद की कालाबाजारी चरम पर होती है तो कहीं कोई छापेमारी नहीं होती। छद्म नाम से किसान को खरीदी करने भेजकर कार्रवाई नहीं की जाती। कृषि विभाग की टीम जब जाती है तो पहले उस डीलर को खबर की जाती है। हर अधिकारी की अपने क्षेत्र में सेटिंग होती है।
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