श्री कृष्ण रुक्मणि विवाह उत्सव हर्षोल्लास से मनाई गईं… कीर्तिकुमार पाण्डेय जी

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जितेंद्र तिवारी

बिर्रा-आदर्श ग्राम मल्दा (बिर्रा ) मे आयोजित श्रीमद भागवत कथा के छठवे दिन श्री कृष्ण रुक्मिणी जी का विवाह उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाई गईं! रासलीला से आज की कथा प्रारम्भ की गईं आचार्य जी ने बताया की रासलीला के पंच अध्याय भागवत के पंच प्राण है यह कथा किसी सामान्य स्त्री पुरुष की नहीं बल्कि आत्मा एवं परमात्मा की मिलन की कथा है!इस लीला मे भगवान ने काम देव का मर्दन किया और तब से भगवान का नाम मदन मोहन पड़ा इस लीला मे गोपी के रूप मे भगवान शिव जी भी शामिल हुए और भगवान शिवजी गोपेश्वर महादेव कहलाए! फिर कंस का धनुष यज्ञ एवं बलराम कृष्ण का मथुरा गमन हुआ वहां कंस की सेविका कुब्जा पर भगवान ने कृपा की! पुनः श्री कृष्ण भगवान द्वारा धनुष तोड़ा गया एवं चाणूर मुष्टीक के साथ कंस का संघार किया गया! फिर भगवान ने अपने माता पिता देवकी वासुदेव को बंदीगृह से मुक्त कराया उग्रसेन महराज राजा बने! फिर दोनों भाइयों ने जाकर संदीपनी मुनि के आश्रम मे विद्या पाई! इधर कंस के ससुर जरासंध से कृष्ण को मारने के लिए मथुरा मे आक्रमण किया एवं भगवान ने उन्हें सत्रह बार युद्ध मे पराजित किया अठा रहवीं बार जरासंध का मित्र कालयावन युद्ध के लिए आया एवं भगवान ने राजा मुचकुँद द्वारा उसे भस्म कराया एवं राजा को परमगति प्रदान की!पुनः जरासंध ने आक्रमण किया और इस बार भगवान मथुरा से भागे और भगवान का नाम रणछोड़दास पड़ गया दोनों भाई पर्वत पर चढ़ गए और जरासंध ने चारों तरफ आग लगवा दी और दोनों भाई समुद्र मे कूद गए एवं विश्वकर्मा जी द्वारा पूर्व निर्मित द्वारिका पूरी मे जाकर रहने लगे! फिर बलराम जी का विवाह रेवती जी के साथ संपन्न हुई!उसके बाद विदर्भ देश के राजा भीष्मक की पुत्री है रुक्मणि जी जिसका विवाह उसके भाई रुक्मी ने शिशुपाल से तय कर दी! तब रुक्मणि जी ने सुदेव नामक ब्राम्हण को पत्र लिखकर भगवान के पास भेजा! रुक्मणि जी का पत्र पाकर भगवान रातो रात विदर्भ देश आये एवं रुक्मणि जी हरण कर द्वारिका ले आये और द्वारिका मे बड़ी धूमधाम के साथ दोनों का विवाह संपन्न हुआ! श्रोताओ ने नाच गाकर प्रेम और आनंद के भगवान का विवाह उत्सव मनाया एवं छठवे दिन की कथा आरती भजन के साथ विश्राम की गईं!

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