रायगढ़: मोबाईल तोड़ने की मामूली घटना के विवाद में बडे़ भाई ने छोटे भाई को जिंदा जलाया…न्यायालय का फैसला-गरीब होने से अपराध कम नहीं होता सुनाया आजीवन कारावास….

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रायगढ़। छोटे भाई को निर्ममता पूर्वक जिंदा जला कर मारने वाले बडे़ भाई को अपनी इस दंरिंदगी के लिये अब आजीवन कारावास की सजा भोगनी पडेंगी कल व्दितीय अपर सत्र न्यायाधीश किरण कुमार जांगड़े ने दोष सिध्द होने पर यह सजा मुकर्र की यह दर्दनाक घटना 9 अक्टूबर 2019 को भूपदेवपुर थाने के देवरी गांव में हुयी थी जिसकी रिपोर्ट 11वी कक्षा के एक छात्र सावन कुमार ने दर्ज करायी थी उसके मुताबिक वह शाम को 6. 30 बजे गांव में घुमने निकला था वापस आया तो उसे घर से चिखने चिल्लाने की आवाज सुनाई दी अंदर गया तो प्रमोदउरांव आगंन में जला पडा़ था उसका चेहरा शरीर व पीठ तथा दोनों हाथ जल गये थे पूछने पर उसने बताया की रोशन ने जरकीन में रखें मिट्टी तेल को उसके शरीर पर छिटकर माचिस से आग लगा कर उसे जला दिया जिसे उसकी बहन कोमल ने बचाने का प्रयास किया तो उसके हाथ भी जल गये थे घटना को उसकी मां सुकांती उराव व गांव के कुछ लोगों ने भी देखा था प्रमोद को रायनो 112 को बुलाकर तुरंत केजीएच अस्पताल रायगढ़ में इलाज के लिये लाया गया थ‍ा जहां 14 अक्टूबर को उसकी मृत्यु हो गयी इस हृदय विदारक हत्या का कारण एक मोबाईल फोन था जिसे प्रमोद के बडे़ भाई रोशन ने तोड़ फोड़ दिया था जिसके कारण छोटे प्रमोद का बडे़ भाई रोशन से विवाद हुआ था और दोनों के बीच बातचीत तक बंद थी इसी बात को लेकर रोशन ने प्रमोद को जिंदा जलाने की घटना को अंजाम दिया मामले में अतरिक्त लोक अभियोजक सुरेंद्र थवाईत ने पैरवी की जो मामले में आरोप प्रमाणित करने में सफल रहें यह साबित किया की रोशन ने मृतक प्रमोद पर मिट्टीतेल छिंटक कर आग लगा कर जला दिया जिस से उसकी मृत्युकारित हुयी.

गरीबी से अपराध की गंभीरता कम नहीं होती-

बहस में आरोपी के अधिवक्ता ने न्यायालय से आरोपी के बहुत गरीब व्यक्ति होने व मजदूरी कर अपने परिवार का जीवन यापन करने तथा 10 अक्टुबर 2019 से न्यायिक अभिरक्षा में निरुध्द रहने एंव वर्तम‍ान में कोरोना (कोविड 19) बिमारी फैली होने की दलील देते हुये अभियुक्त को कम से कम सजा से दंडित किया जाने की फरियाद की विव्दान न्यायाधीश ने पूरे मामले पर विचारण किया तो पाया की आरोपी ने अपने सगेभाई की निर्ममता पूर्वक उस पर मिट्टी का तेल डाल कर माचिस से आग लगाई हैं जो गंभीर प्रकृति का अपराध हैं इसलिये अपराधी को कम से कम दंड देना न्याय के उध्देश्य की पूर्ति नहीं करता और निर्धन होना अपराध की गंभीरता को कम नहीं करता लेकिन मृत्युदंड दिये जाने लायक कोई विशेष परिस्थिती भी मामले में विद्यमान नहीं हैं इसलिये भा. द. वि. की धारा 302 का अपराध दोष सिध्द पाये जाने पर उसे आजीवन कारावास व 500 रुपये के आर्थक दंड से दंडित किया जाता हैं अरोपी व्दारा न्यायिक अभिरक्षा में गुजारी गयी अवधी को समायोजित किये जाने का आदेश न्यायालय व्दारा दिया गया हैं .

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