देवी गंगा, देवी गंगा लहर तुरंगा, हमर भोजली दाई के भीजे आठों अंगा…गीतों के साथ हुआ भोजली का विसर्जन…

मनोज अग्रवाल
जैजैपुर/नगर पंचायत जैजैपुर में भोजली पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया गया यहां बड़ी संख्या में माताएं एवं बहने सिर पर टोकरी में पीला जवारा लिए भजन-कीर्तन करते बच्चों, युवतियों और महिलाओं का समूह, आनंद लेते बच्चे…। यह नजारा सुक्रवार को बंधवा तालाब के पचरी घाट में भोजली उत्सव का था। यहां लोगों ने एक-दूसरे को भोजली भेंट कर मितान और गिंया बदने की परंपरा निभाई।

रक्षाबंधन के दूसरे दिन भादो कृष्ण पक्ष की प्रथमा तिथि पर भोजली मनाई गई। इस लोक पर्व को लेकर लोगों का उत्साह देखते ही बन रहा था। नगर के धीवर मोहल्ला, नेगी गुड़ी चौक, फुलवारी पारा, महंत मोहल्ला से सहित शहर के अलग-अलग मोहल्लों से एकजुट हो राम मंदिर से शोभायात्रा के साथ लोग भोजली विसर्जन करने बंधवा तालाब के पचरी घाट पहुंचे। इसके अलावा नगर के और अन्य तालाब में भी भोजली का विसर्जन किया गया। यह परंपरा दोपहर से ही शुरू हो गई थी। वे पानी बिना मछरी, पवन बिना धाने, सेवा बिना भोजली के तरसे पराने…, रिमझिम-रिमझिम सावन के फुहारे, चंदन छिटा देवंव दाई जम्मो अंग तुम्हारे…अहो देवी गंगा, देवी गंगा लहर तुरंगा, हमर भोजली दाई के भीजे आठों अंगा…गीत गाते हुए चल रहे थे। विसर्जन के बाद प्रसाद के रूप में भोजली का कुछ हिस्सा उन्होंने खुद रखा। इसे घर के पूजा वाले स्थान में रखा जाएगा।

यहां आसपास के गांवाें से बड़ी संख्या में लोग भोजली देखने पहुंचे। दोपहर से ही यहां लोगों की भीड़ जुटनी शुरू हो गई थी।
सूर्य की रोशनी से छिपाकर सहेजते हैं भोजली
सावन के दूसरे पक्ष की पंचमी तिथि को मंदिरों या फिर घर के पूजा स्थल में गेहूं बोया जाता है। भोजली को सूर्य की रोशनी से बचा कर रखा जाता है। इसे अंधेरे कमरे में दीपक की रोशनी में रखकर हल्दी-पानी सींचते हुए बड़ा किया जाता है। राखी के दूसरे दिन इसका विसर्जन किया जाता है।

बधवा तलाब में महिलाओं ने पूजा-अर्चन कर देवी गंगा का जयकारा लगा भोजली विसर्जन किया। इस मौके पर नगर पंचायत अध्यक्ष सहित नगर के गणमान्य नागरिक एवं पार्षद गण उपस्थित थे।देवी गंगा, देवी गंगा लहर तुरंगा, हमर भोजली दाई के भीजे आठों अंगा…गीतों के साथ हुआ भोजली का विसर्जन

जैजैपुर/नगर पंचायत जैजैपुर में भोजली पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया गया यहां बड़ी संख्या में माताएं एवं बहने सिर पर टोकरी में पीला जवारा लिए भजन-कीर्तन करते बच्चों, युवतियों और महिलाओं का समूह, आनंद लेते बच्चे…। यह नजारा सुक्रवार को बंधवा तालाब के पचरी घाट में भोजली उत्सव का था। यहां लोगों ने एक-दूसरे को भोजली भेंट कर मितान और गिंया बदने की परंपरा निभाई।
रक्षाबंधन के दूसरे दिन भादो कृष्ण पक्ष की प्रथमा तिथि पर भोजली मनाई गई। इस लोक पर्व को लेकर लोगों का उत्साह देखते ही बन रहा था। नगर के धीवर मोहल्ला, नेगी गुड़ी चौक, फुलवारी पारा, महंत मोहल्ला से सहित शहर के अलग-अलग मोहल्लों से एकजुट हो राम मंदिर से शोभायात्रा के साथ लोग भोजली विसर्जन करने बंधवा तालाब के पचरी घाट पहुंचे। इसके अलावा नगर के और अन्य तालाब में भी भोजली का विसर्जन किया गया। यह परंपरा दोपहर से ही शुरू हो गई थी। वे पानी बिना मछरी, पवन बिना धाने, सेवा बिना भोजली के तरसे पराने…, रिमझिम-रिमझिम सावन के फुहारे, चंदन छिटा देवंव दाई जम्मो अंग तुम्हारे…अहो देवी गंगा, देवी गंगा लहर तुरंगा, हमर भोजली दाई के भीजे आठों अंगा…गीत गाते हुए चल रहे थे। विसर्जन के बाद प्रसाद के रूप में भोजली का कुछ हिस्सा उन्होंने खुद रखा। इसे घर के पूजा वाले स्थान में रखा जाएगा।
यहां आसपास के गांवाें से बड़ी संख्या में लोग भोजली देखने पहुंचे। दोपहर से ही यहां लोगों की भीड़ जुटनी शुरू हो गई थी।
सूर्य की रोशनी से छिपाकर सहेजते हैं भोजली
सावन के दूसरे पक्ष की पंचमी तिथि को मंदिरों या फिर घर के पूजा स्थल में गेहूं बोया जाता है। भोजली को सूर्य की रोशनी से बचा कर रखा जाता है। इसे अंधेरे कमरे में दीपक की रोशनी में रखकर हल्दी-पानी सींचते हुए बड़ा किया जाता है। राखी के दूसरे दिन इसका विसर्जन किया जाता है।
बधवा तलाब में महिलाओं ने पूजा-अर्चन कर देवी गंगा का जयकारा लगा भोजली विसर्जन किया। इस मौके पर नगर पंचायत अध्यक्ष सहित नगर के गणमान्य नागरिक एवं नगरवासी उपस्थित थे।
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