“सारंगढ़” में रोका-छेका अभियान पूरी तरह फ्लॉप..? गोठान खाली…सडक पर आवारा मवेशियों का जमावड़ा..!असामाजिक तत्वों का अड्डा बनता गोठान..?

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जगन्नाथ बैरागी

रायगढ़। जिले का सबसे बड़ा तहसील के तमगा वाला सारंगढ़ जहां बड़े बड़े धुरंधर पक्ष और विपक्ष के नेता मौजूद हैं उन्हीं के आंख के सामने रोका-छेका दम तोड़ते नजर आ रही है। पक्ष तो दूर विपक्ष के नेताओं को भी जनसमस्या नजर नही आ रही हो तो बाकी के क्या कहने…!

ग्रामीण क्षेत्रो में खुले में घूमने वाले पशुओं से फसलों को सुरक्षित रखने के लिए रोका छेका की परंपरा का प्रचलन है। शहरों के आसपास भी फसलों, बाड़ियों, उद्यानों आदि की सुरक्षा के लिए नगरीय निकाय क्षेत्र में भी रोका छेका अभियान को लागू किया गया है। सूबे के मुखिया भूपेश बघेल के निर्देश में नगरीय क्षेत्रों को आवारा पशु मुक्त, साफ-सुथरा व स्वच्छ रखने के साथ-साथ दुर्घटनामुक्त रखने के लिए एक जुलाई से जिले के नगरीय निकायों में संकल्प अभियान चलाया गया है।

मवेशियों को रोकने-छेकने का अभियान वृहद रूप में चलाया तो जाता है, लेकिन मवेशियों का राज पूरे साल भर पूरे सारंगढ़ के सभी सड़कों पर देखा जा सकता है। शहर के बाहरी व अंदरूनी सभी रास्तों पर मवेशी बैठ रहे हैं। चाहे बस स्टैंड, बिलासपुर रोड, रायपुर रोड, कचहरी चौक, कमलानगर, या रायगढ़ रोड़ हर जगह लोग घायल हो रहे हैं। वहीं, यातायात भी प्रभावित हो रहा है।

ग्रामीण क्षेत्रों में भी मवेशी सड़कों पर डेरा जमा रहे हैं। यही नहीं मुख्य मार्गो में भी कई चैराहों में मवेशियों के बैठे होने से खतरा बढ़ गया है। वाहनो को खडा करते ही जानवरो के द्धारा डिक्की में मुह मार दिया जाता है या फिर थैले में रखे सामनो को जमीन पर बिखेर दिया जाता है। दूसरी ओर मवेशी हादसे की वजह भी बन चुके हैं। इसके बाद भी रोका-छेका अभियान को लेकर पशुमालिक और विभागीय अफसर गंभीरता नहीं दिखा रहे हैं।

शहर में कुछ जगह आवारा मवेशियों को धरपकड़ का काम जरूर चल रहा है परंतु ग्रामीण क्षेत्रों में रोका छेका अभियान का कोई अस्तित्व नजर नहीं आ रहा।

राज्य शासन की महत्वपूर्ण योजना रोका-छेका अभियान नगर में फेल फैल होता प्रतीत हो रहा है। यहां बड़ी संख्या में घूम रहे बेसहारा मवेशियों को रोकने और पकड़ने वाला कोई नहीं है। परिणाम स्वरुप सड़क के बीचों-बीच झुंड के झुंड मवेशी बैठे रहते हैं। प्रदेश सरकार की रोका-छेका योजना में विभागीय अफसरों की रुचि नहीं होने के कारण फ्लॉप साबित हो रही है। इसके लिए स्थानीय नेताओं का उदासीन रवैया भी जिम्मेदार है।

असामाजिक तत्वों का अड्डा बनता जा रहा गोठान का बदहाली व्यवस्था-

जिले में बने अधिकतर गोठान या तो बदहाली अवस्था में है या फिर असामाजिक तत्वों का अड्डा बनते जा रहे हैं। इसलिए मवेशी सड़क पर आवारा घूमते नजर आ रहे हैं। प्रशासन के लिए सबसे बड़ी चुनौती मवेशियों को सड़क पर बैठने से रोकना है, किंतु प्रशासन इस दिशा में विफल नजर आ रहा है।

प्रदेश सरकार अति महत्वपूर्ण योजना के क्रियान्वयन में अधिकारियों और पंचायतों की उदासीन रवैया के चलते ग्रहण लगता जा रहा है। जहां प्रदेश सरकार ने पशुधन की रक्षा के लिए सरकारी खजाने का मुंह खोल दिया। वहीं, जिले में अफसरशाही के चलते सरकार की महत्वकांक्षी योजना महज कागजों तक सिमटती जा रही है। पंचायतों को गोठान निर्माण के लिए लाखों की स्वीकृति प्रदान की जाती हैं, किंतु धरातल पर वस्तु स्थिति कुछ और ही बयां कर रही है। सुबह शाम सड़कों पर मवेशियों का जमावड़ा बना रहता है। वहीं, जिले के ज्यादातर बने गोठान असामाजिक तत्वों का अड्डा बन गया है। जिले के ग्रामीण अंचलों में बने गोठानों में मवेशियों की बजाय असामाजिक तत्वों का जमावड़ा बना रहता है।सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार शाम होते ही असामाजिक तत्वों द्वारा उक्त स्थल पर जुआ और शराब की वारदातों को खुलेआम अंजाम दिया जा रहा है?