राजनीतिक मकड़जाल के चक्की में पिसाता बरमकेला का आमजन…? किससे बयां करें अपने दुख की दास्तां…!

जगन्नाथ बैरागी
रायगढ़। बरमकेला के आमजन अपनी तकलीफों को दबी जुबान से ही व्यक्त कर पाते हैं,खुलकर कह नही पाते क्योंकि यहाँ का राजनीतिक ताना-बाना ही ऐसा है कि कौन किसका है,ये कह नही सकते..! हम बात कर रहे हैं बरमकेला के शांत फ़िजा में फैले हुये शोरगुल की, इन दिनों बरमकेला शहर के मध्य में अघोषित एवं अनाधिकृत धरना प्रदर्शन से बरमकेला वासी परेशान नजर आ रहे हैं, जहाँ आये दिन कानफोड़ू ध्वनि विस्तारक यंत्र लगाकर कभी 3 दिन तो कभी 15 दिन तक धरना दिया जाता है,अभी और एक मुद्दा सारंगढ़ v/s रायगढ़ जिला का गरमाया हुआ है,इसके लिए भी जिस तरह से शोरगुल और कोरोना के खतरों के बीच भीड़बाजी की जा रही है बरमकेला सहमे हुवे प्रतित हो रहा है? जबकि सूत्रों की माने तो इन सबसे आमजन का दूर-दूर का नाता नही है,ये सब राजनीतिक पार्टियां अपनी अपनी रोटी सेकने में लगी हुई हैं..! लेकिन इन सब चीजों से आमजन को जो समस्या हो रही है उनकी तकलीफों को कौन समझेगा? इन सभी स्वार्थपरक राजनीति से कभी चक्काजाम में गाड़ी रुकने से मरीज को परेशानी, स्कूल/या ऑफिस/ इंटरव्यू में समय पर न पहुँच पाने का दुख आम जनता ही समझ सकती है। कानफोड़ू ध्वनि विस्तारक यंत्रों के शोर से हृदय रोगियों एवं आमजन को होने वाली तकलीफों और ख़ासकर के सड़क किनारे रहने वाले बाशिन्दे और व्यापारियों को होने वाली तकलीफों से किसी को कोई सरोकार नही है,ज़रा सोंचिये कि यदि किसी के परिजन का निधन हो गया है और आप दुःख मना रहे हैं,माहौल गमगीन है,और उसी समय कोई कानफोड़ू ध्वनि यंत्रों से फिल्मी गाने चलाये तो आपको क्या महसूस होगा? बरमकेला के आमजन इन सभी चीजों से परेशान और खिन्न हो चुके हैं,किंतु सिर्फ़ दबे जुबान से ही अपनी पीड़ा को आपस मे बाँट कर चुप रह जाते हैं।शासन-प्रशासन को भी इन समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए और बरमकेला में भी किसी ऐसे जगह को धरना-प्रदर्शन स्थल के रूप में चिन्हित कर देना चाहिए जिससे कि आम नागरिकों को किसी प्रकार की समस्या न हो।…
(नोट- उपरोक्त विचार बरमकेला के एक सामाजिक कार्यकर्ता एवं विचारक के हैं।)
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