छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ में मुद्दाविहीन रहा लोकसभा चुनाव : सिर्फ मोदी चेहरा बनी वजह, टिकट ही नहीं चाहते थे कई कांग्रेसी नेता.. पिछले 3 चुनावों में हर बार बढ़ी वोटिंग प्रतिशत, भाजपा को मिला फायदा..

छत्तीसगढ़ में 11 सीटों पर लोकसभा के लिए वोटिंग हो गई। पिछले चार चुनावों में छत्तीसगढ़ में एक बात सुकून देने वाली है कि वोटिंग का परसेंट हर बार एक दो प्रतिशत बढ़ता रहा। 7 मई को शाम 6 बजे तक छत्तीसगढ़ में 67.07 प्रतिशत वोटिंग हुई।

आंकड़े अभी बढ़ेंगे। इससे पहले तीन चुनावों में लगातार वोटिंग बढ़ी थी। 2009 में 55.3 फीसदी, 2014 में 69.5 प्रतिशत और 2019 में 73. 8 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। यानी पिछले 15 सालों में करीब 18 प्रतिशत वोटिंग बढ़ी है। सशक्त लोकतंत्र के लिए ये शुभ संकेत है।

मुद्दाविहीन चुनाव

पिछले चुनावों के विपरीत इस बार का चुनाव मुद्दा विहीन हो गया लगता है। 2009 और 2014 में यूपीए 1 और यूपीए 2 के दौरान भ्रष्टाचार का मुद्दा जबरदस्त उछला था। इस दौरान 2 जी स्पेक्ट्रम, आदर्श घोटाला, कामन वेल्थ गेम्स घोटाला समेत कई घोटालों की चर्चा होती थी।

2014 में जब नरेंद्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने, तो 2019 में पांच साल पूरे करने के बाद राफेल का मुद्दा पूरे देश में छाया। लेकिन पुलवामा की आतंकी घटना के बाद सर्जिकल स्ट्राइक और उस पर कांग्रेस की बयानबाजियों ने चुनाव का रुख मोड़ दिया।

2024 का चुनाव एक ऐसा चुनाव बना, जिसमें कोई मुद्दा ही नहीं है। सिर्फ मोदी का चेहरा है और अगर मुद्दे हैं, तो कांग्रेस उसे अब तक लोगों के बीच पहुंचा नहीं पार्ड। कांग्रेस हर मंच से महंगाई, बेरोजगारी, आदिवासी, दलित, सांप्रदायिकता पर बात करती रही, लेकिन ये बातें घरों तक नहीं पहुंच पाई। इन सबके जवाब में भाजपा मोदी का चेहरा सामने ले आई।

छत्तीसगढ़ में कितना कारगर रहा मोदी का चेहरा

छत्तीसगढ़ की बात करें, तो जो हाल देश के बाकी हिस्सों का है, कमोबेश वही हाल छत्तीसगढ़ का है। जब प्रत्याशियों की घोषणा की गई, तो कई चेहरे अप्रत्याशित थे। दुर्ग से विजय बघेल और राजनांदगांव से संतोष पांडेय को छोड़कर सभी नए चेहरे सामने लाए गए।

ये ऐसे नाम थे, जो बहुत ज्यादा चर्चा में कभी नहीं रहे, जबकि इनके सामने कांग्रेस ने अपने दिग्गजों को चुनावी मैदान में उतारा। यानी भाजपा को मोदी के चेहरे पर इतना भरोसाथा कि टिकट मिलेगा, तो संगठन जिताकर ले आएगा। दिग्गजों को उतारने के बाद भी आखिरी तक कांग्रेस में इस आत्मविश्वास की कमी दिखती रही।

टिकट ही नहीं चाहते थे कई कांग्रेसी नेता

चुनाव से पहले ये चर्चा काफी तेज थी कि, कांग्रेस के नेता चुनाव ही नहीं लड़ना चाहते। इस फेहरिस्त में भूपेश बघेल का भी नाम था। हालांकि इन चर्चाओं को उस समय विराम लग गया, जब नामों की घोषणा हुई। कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री समेत दिग्गज पूर्व मंत्री व पूर्व विधायकों को चुनावी समर में उतारा। कारण शायद ये हो सकता है कि चर्चित नामों को उतारने से पब्लिक के बीच में ज्यादा मेहनत की जरूरत न हो।

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