बीजेपी ने विष्णुदेव साय को ही क्यों बनाया छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री? 5 Points में समझिए पार्टी की रणनीति…
बीजेपी ने छत्तीसगढ़ के नए मुख्यमंत्री के रूप में विष्णुदेव साय का ऐलान कर दिया है। इस बार बीजेपी ने राज्य में आदिवासी दांव चलते हुए विष्णुदेव साय को आगे किया है। बीजेपी ने चुनाव के दौरान भी आदिवासी वोटर को साधने के लिए कई ऐलान किए थे।
ऐसे में इनका सीएम बनना किसी को भी हैरान नहीं कर गया है। बीजेपी ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत साय को मुख्यमंत्री के रूप में आगे किया है। यहां जानते हैं कि बीजेपी की पीछे की रणनीति क्या रही है-
छत्तीसगढ़ में सबसे निर्णायक आदिवासी वोटर
छत्तीसगढ़ में आदिवासी वोटर काफी निर्णायक माना जाता है। राज्य की 32 फीसदी आबादी आदिवासी है और 29 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित रहती हैं। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य को लेकर माना जाता है कि यहां पर बिना आदिवासी वोटर के कोई भी पार्टी सरकार नहीं बना सकती है। बड़ी बात ये भी है कि जिस तरफ भी आदिवासी वोट पड़ता है, उसकी सरकार बनना तय रहता है। इस बार छत्तीसगढ़ चुनाव में जो 29 आरक्षित सीटें रहीं, उनमें से 17 पर बीजेपी ने जीत दर्ज की। पिछली बार इन्हीं सीटों पर पार्टी का सूपड़ा साफ हुआ था। माना जा रहा है कि आदिवासी वोटरों के पाले में आने की एक बड़ी वजह विष्णुदेव साय भी रहे। ऐसे में अब उन्हें सीएम बनाकर पूरे आदिवासी समाज को बड़ा संदेश देने का काम किया गया है।
दूसरे आदिवासी सीएम का तमगा
बीजेपी लंबे समय से एक सोची समझी रणनीति के तहत आदिवासी और पिछड़े वर्ग को साधने की कोशिश में लगी है। इसका एक तरीका उसने ढूढ़ निकाला है, वो बड़े पदों पर ऐसे समाज के लोगों को मौका दे रही है। कुछ महीनों पहले इस देश को पहली आदिवासी राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मू मिली थीं। अब पार्टी ने उसी नेरेटिव को आगे बढ़ाते हुए छत्तीसगढ़ को उसका दूसरा आदिवासी सीएम दे दिया है। विपक्ष इस समय जातीय जनगणा के पीछे पड़ा है, तब बीजेपी ने दो कदम आगे बढ़कर विष्णुदेव साय को मुख्यमंत्री बना सबसे बड़ा सियासी दांव चल दिया है।
साफ छवि और भ्रष्टाचार विरोधी वाला नेरेटिव
बीजेपी 2024 के चुनाव में भ्रष्टाचार को एक बार फिर सबसे बड़ा मुद्दा बनाने वाली है। पीएम मोदी खुद अपने कई कार्यक्रमों में ऐलान कर चुके हैं कि लूटने वालों को पैसा वापस करना पड़ेगा। उनके उसी नेरेटिव में ऐसे लोग सबसे मुफीद बैठते हैं कि सियासी छवि साफ हो, जो जमीन से जुड़े नेता हों और जिनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज ना हों। अभी के लिए विष्णुदेव साय इन सभी कैटेगरी में एकदम फिट बैठते हैं और अब इन्हीं के सहारे बीजेपी अपनी आगे की रणनीति पर काम करने वाली है। इस समय वैसे भी धीरज साहू के कुबेर लोक ने बीजेपी को एक बड़ा मुद्दा दे दिया है, उस बीच इस तरह की ताजपोशी से खुद को ईमानदार दिखाने की कोशिश और तेज कर दी जाएगी।
संघ से करीबी, संगठन पर मजबूत पकड़
बीजेपी जब भी मुख्यमंत्री चुनती है, उसका एक क्राइटेरिया ये भी रहता है कि संघ से उसके रिश्ते कैसे चल रहे हैं। ऐसा परसेप्शन सेट हो चुका है कि अगर कोई संघ बैकग्राउंड से आता है या फिर जिसके संघ के साथ मजबूत रिश्ते रहते हैं, संगठनात्मक तौर पर वो ज्यादा मजबूत रहता है और अनुशासन बनाए रखने में उसकी भूमिका सक्रिय रहती है। विष्णुदेव साय को भी इस बात का पूरा फायदा मिला है। उनका संघ का करीबी होना उन्हें पहले ही सीएम रेस में एक प्रबल दावेदार बना गया था। बीजेपी वैसे भी 2024 से पहले एक ऐसे नेता की तलाश में थी, जो सभी को एकजुट रख सके, जिसकी संगठन पर मजबूत पकड़ रहे। साय तो कई बार प्रदेश अध्यक्ष की भूमिका भी निभा चुके हैं, ऐसे में उनके पास अनुभव की कोई कमी नहीं है।
झारखंड-ओडिशा में साबित होंगे निर्णायक
बीजेपी का छत्तीसगढ़ को लेकर जो आदिवासी दांव चला गया है, इसका असर सिर्फ इस राज्य तक सीमित नहीं रहने वाला है। पार्टी का फोकस 2024 के चुनाव पर तो है ही, उसे झारखंड में जेजेपी की सियासत को चोट पहुंचानी है और ओडिशा में पटनायक के शासन को चुनौती देनी है। इन दोनों ही राज्यों में आदिवासी वोटबैंक सक्रिय भूमिका निभाने वाला है। बीजेपी वैसे भी नेरेटिव की लड़ाई हमेशा से ही आगे रहने की कोशिश करती है। छत्तीसगढ़ में आदिवासी सीएम दिया गया है, लेकिन मैसेज झारखंड और ओडिशा के लिए भी है। एक तरफ झारखंड में 28 आदिवासी आरक्षित सीटे हैं तो वहीं ओडिशा में ये आंकड़ा 24 सीटों का है।
माना जा रहा है कि एक आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने के बाद पार्टी को इस समुदाय को साधने के लिए अपना सबसे बड़ा स्टार प्रचारक भी मिल गया है। यानी कि विष्णुदेव का इस्तेमाल बीजेपी झारखंड से लेकर ओडिशा तक के चुनाव में कर सकती है।
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