सारंगढ़: साहेब, एक नज़र ईधर भी..! कहीं स्कूली बच्चों के जान पर मत बन आये विभागीय अनदेखापन….अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता का दंश झेल रहा एक स्कूल..!
जगन्नाथ बैरागी
रायगढ़। सारंगढ़ का रींवापार स्कूल अपनी दुर्दशा पर रो रहा है..! छत्तीसगढ़ सरकार शासकीय स्कूल के विकास के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। ऐसी हर योजना अपने स्तर पर लागू कर रही है जिससे नॉनिहालों का चहुमुखी विकास हो।
भवन,भोजन,पुस्तक,ड्रेस न जाने कितने योजनाओं को लागू कर चौतरफा अलख जगाने के लिए प्रतिबद्ध राज्य सरकार की जितनी तारीफ़ कि जाये कम है। परन्तु रीवापार जैसे कुछ स्कूल ऐसे भी हैं जहां बच्चे जान की जोख़िम डालकर पढ़ाई कर रहे हैं।
जर्जर हालत में स्कूल की बिल्डिंग –
अभिभावकों के शिकायत पर मीडिया टीम द्वारा स्कूल जाने पर ज्ञात हुआ कि शाला की छत कई जगहों से जर्जर हालत में है। बरसात में अनहोनी से भी इंकार नही किया का सकता। इस अवस्था मे बच्चों को बैठाकर पढ़ाना मानो किसी दुर्घटना को न्यौता देने के समान होगा।
ग्राम-पंचायत की निष्क्रियता भी हो सकता है कारण
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ग्राम पंचायत को अधिकार होता है कि अपने स्कूली समस्याओं को ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों के माध्यम से उच्चाधिकारियों तक प्रेषित करें। जिन पंचायतों के सरपँच और सदस्य जाहरुक होते हैं उन सरकारी स्कूलों की स्थिति बेहतर होती है। लेकिन कई जनप्रतिनिधियों को अपने क्षेत्र के सरकारी स्कूलों को झांकने तक कि फुर्सत नही होती की भारत के भविष्य किन हालातों में ज्ञान अर्जन कर रहे हैं।
2 शिक्षकों के भरोसे 127 विद्यार्थी:-
रीवापार स्कूल के बच्चे महज जान को जोखिम में रखकर ही पढ़ाई नही कर रहे बल्कि शिक्षकों की कमी से भी दो-चार हो रहे हैं।
127 दर्ज संख्या सिर्फ़ 2 शिक्षकों के सहारे चल रही है। और वर्तमान जानकारी,डाक,रजिस्टर मेन्टेन,अन्य योजनाओं की जानकारी देने में ही एक शिक्षक का समय निकल जाता होगा तो भला 1 शिक्षक कैसे इतने बच्चों को शिक्षा दे पाते होंगे यह भी चिंतनीय विषय है।
शिक्षकों और शाला विकास समिति की मानें तो इस बाबत उन्होंने इस समस्या के निराकरण हेतु विकास खण्ड शिक्षा अधिकारी को लिखित में आवेदन किया है।