कुछ याद उन्हें भी कर लो जो लौट के घर न आये….कारगिल युद्ध के महानायक अमर शहीद कैप्टन मनोज पांडे जी को सादर नमन….

नितिन सिन्हा
आइये आपका परिचय एक ऐसी सख्शियत से करवाएं जिन्होंने कारगिल युद्ध के दौरान कहा था
*मेरा बलिदान सार्थक होने से पहले अगर मौत दस्तक देगी तो मैं संकल्प लेता हूं कि मैं मौत को पहले मार डालूंगा* .’ ये शब्द उस योद्धा के थे जिसने अपने देश भारत के लिये सर्वोच्च बलिदान(शहादत) देने में भी पीछे नही रहा.
हम बात कर रहे है कारगिल हीरो *शहीद कैप्टन मनोज कुमार पांडे*, परमवीर चक्र विजेता,जिन्होंने मात्र 24 साल की उम्र में ही देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे. लेकिन अपनी शहादत से पहले आपने करगिल जंग में जीत की बुनियाद रख दी थी…
साल 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जब अमन और भाई-चारे के सन्देश के साथ बस लेकर लाहौर रवाना हुए थे.ठीक उसी वक्त पाकिस्तान करगिल जंग की तैयारी पूरी कर चुका था.
लाइन ऑफ कंट्रोल के पास करगिल सेक्टर में आतंकवादियों के भेष में पाकिस्तानी सेना ने कई भारतीय चोटियों पर धोखे से कब्जा कर लिया था…
गोरखा रेजीमेंट के लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे सियाचिन की तैनाती के बाद छुट्टियों पर घर जाने की तैयारी में थे. लेकिन अचानक 2-3 जुलाई की रात उन्हें बड़े ऑपरेशन की जिम्मेदारी उन्हें और उनकी पलटन को सौंपी गई. लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे को खालुबार पोस्ट फतह करने की जिम्मेदारी मिली. रात के अंधेरे में मनोज कुमार पांडे अपने साथियों के साथ दुश्मन पर हमले के लिए कूच कर गए…
दुश्मन ऊंचाई पर छिपा बैठ कर नीचे के हर मूवमेंट पर नजर रखे हुए था. एक बेहद मुश्किल जंग के लिये मनोज कुमार अपनी टुकड़ी के साथ आगे बढ़ रहे थे.पाकिस्तानी सेना को मनोज पांडे के मूवमेंट का जैसे ही पता चला उसने ऊंचाई से फायरिंग शुरु कर दी. लेकिन आपने भयंकर फायरिंग की परवाह किये बिना ही काउंटर अटैक का निर्णय लिया फिर हैंड ग्रेनेड फेंकते हुए आगे बढ़ने लगे…
सबसे पहले उन्होंने खालुबार की पहली पोजिशन से दुश्मन का सफाया किया.आमने-सामने की लड़ाई में दो पाकिस्तानी सैनिकों को उड़ा दिया और पहला बंकर ध्वस्त कर दिया. उसके बाद उन्होंने दूसरी पोजिशन पर जमे पाकिस्तानी सैनिकों को मार कर दूसरा बंकर भी ध्वस्त कर दिया. इसके बाद मनोज कुमार पांडे अपने जवानों का हौसला बढ़ाते हुए और गोलियों की परवाह न करते हुए तीसरी पोजिशन की तरफ रुख किया। वहां भी उन्होंने पाकिस्तानी सैनिकों को मार कर उनका बंकर उड़ा दिया. लेकिन इस दौरान एक एक गोली उनके कंधे और पैर पर लग चुकी थी. इसके बावजूद मनोज रुके नहीं. वो चौथी पोजिशन से दुश्मन के खात्मे के लिये आगे बढ़ चले.उन्होंने हैंड ग्रेनैड फेंक कर बंकर ध्वस्त कर दिया.तभी दुश्मन की एक गोली उनके माथे पर लगी,और मनोज देश के लिए शहीद हो गए. लेकिन वीरगति को प्राप्त होने से पहले खालुबार पर भारतीय सेना के कब्जे की नींव रख चुके थे.अपने मिशन को पूरा करते तक आपने 11 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया था…
तिरंगे से लिपटे ताबूत में इस शहीद का शव जब घर लौटा,तब देश भर के लोगों की आंखें नम हो गई थी।
पूरा देश अपने इस 24 साल के जांबाज को अंतिम विदाई देने के लिए सड़कों पर उतर आया था।……
शहीद कैप्टन मनोज पांडे जी को उनके शहादत दिवस पर सादर शत-शत नमन
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