“जनता का फैसला स्वीकार नहीं, ईवीएम है जिम्मदार” हार क्यों नहीं मान रही है कांग्रेस? क्या बीजेपी को वोट देने वाले लोग अनपढ़ हैं? – (आज तक)

तीन राज्यों में बीजेपी को मिली भारी जीत के बाद कांग्रेस जैसी देश की सबसे पुरानी पार्टी जो तेवर दिखा रही है वो कहीं से भी उसे सूट नहीं कर रहा है. इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि देश में लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने में कांग्रेस की बड़ी भूमिका रही है.
पर आज की कांग्रेस को क्या हो गया है? कांग्रेस के ट्विटर हैंडल और बड़े नेता इसे ईवीएम की जीत बता रहे हैं. कांग्रेस के बौद्धिक साथी लगातार इसे ‘उत्तर भारत बनाम दक्षिण भारत’ बताने में तुले हुए हैं. कांग्रेस के सहयोगी दल डीएमके का एक सांसद लोकसभा में बीजेपी को वोट देने वाले प्रदेशों को गोमूत्र स्टेट कह कर चिढ़ा रहा है. क्या कांग्रेस आगामी लोकसभा चुनावों को भी नहीं जीतना चाहती?
क्या इस तरह के विश्लेषण से पार्टी अपनी कमियों पर फोकस कर सकेगी? या यह सब सोची समझी साजिश के तहत हो रहा है? कांग्रेस अपने पैरों पर कुल्हाड़ी क्यों मार रही है? देश के कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी जिस तरह से तीन राज्यों में बीजेपी की जीत को उत्तर बनाम दक्षिण से जोड़ रहे हैं क्या वह झेंप मिटाने का यत्न है या सोची समझी साजिश? ताकि आगामी चुनावों दक्षिण में अपनी स्थित मजबूत किया जा सके.
किस तरह माहौल बनाया गया
विवाद की शुरूआत कांग्रेस नेता कार्ति चिदम्बरम ने की. उन्होंने अपनी पार्टी की तेलंगाना पर जीत और भाजपा की तीन राज्यों में निर्णायक जीत हासिल करने पर नाराजगी जताई. उन्होंने एक्स पर ऐसे कई पोस्ट लिखे जिसके बाद मतदाताओं के बीच उत्तर-दक्षिण विभाजन पर बहस छिड़ गई. इसी तरह कांग्रेस नेता प्रवीण चक्रवर्ती ने एक्स पर कहा: “दक्षिण-उत्तर सीमा रेखा मोटी और स्पष्ट होती जा रही है ” दबाव बढ़ने पर बाद में उन्होंने पोस्ट डिलीट कर दी. भाजपा नेता सीआर केसवन ने हटाए गए ट्वीट का एक स्क्रीनशॉट साझा करते हुए लिखा कि देश को जाति के आधार पर विभाजित करने की असफल कोशिश के बाद कांग्रेस अब देश को उत्तर-दक्षिण के आधार पर विभाजित करने का प्रयास कर रही है.
इसके बाद लेखक-पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुराता, एमके वेणु आदि के साथ कई नामी लोगों ने ” उत्तर-दक्षिण विभाजन” के बारे में बात करते हुए ट्वीट्स की भरमार लगा दी. फिर शुरू हुआ बीजेपी की ओर से कांग्रेस पर हमला. बाद में खुद पीएम ने भी कांग्रेस को आड़े हाथ लिया.
70 साल पुरानी आदत
क्या कांग्रेस कई दशकों तक देश पर राज करने के चलते खुद को सत्ता से दूर नहीं कर पा रही है. क्या ये सही है कि विपक्ष में बैठना कांग्रेस को मंजूर नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी “उत्तर बनाम दक्षिण” का समीकरण बनाने पर कांग्रेस पर तंज कसा.पीएम ने एक्स पर इंडिया टुडे के जर्नलिस्ट शिव अरूर की एक पोस्ट जिसका शीर्षक ‘मेल्टडाउन-ए-आजम’ था पर जवाब देते हुए लिखा कि “वे अपने अहंकार, झूठ, निराशावाद और अज्ञानता से खुश रहें. लेकिन… उनके विभाजनकारी एजेंडे से सावधान रहें. 70 साल की पुरानी आदत इतनी आसानी से दूर नहीं जा सकती. साथ ही, लोगों की समझदारी भी ऐसी है कि उन्हें आगे कई और नुकसान के लिए तैयार रहना होगा,”
पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं कि कांग्रेस अपनी हार को पचा नहीं पा रही है. क्योंकि कांग्रेस में अभी भी वो ही नेता सक्रिय हैं जिन्होंने पार्टी का चरम काल देखा है. जब तक नेहरू परिवा, दिग्विजय सिंह, कमलनाथ , अशोक गहलोत जैसे पुराने नेताओं का पार्टी पर वर्चस्व रहेगा उन्हें सत्ता पक्ष में होने का भ्रम बना रहेगा. कई दशकों तक सत्ता में बने रहने वाले लोगों को धरातल में आने में भी की दशक लगेंगे.
जनता का फैसला स्वीकार नहीं, ईवीएम है जिम्मदार
पहले कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह फिर एमपी कांग्रेस का एक्स हैंडल ने जिस तरह से मध्यप्रदेश में हार के लिए ईवीएम को जिम्मेदार ठहरया है वो कांग्रेस की हताश को ही दिखाता है. दिग्विजय सिंह सवाल उठाते हैं कि पोस्टल बैलेट में कांग्रेस हर सीट पर बढ़त बनाई हुई थी तो ईवीएम में क्यों पिछड़ गई. सभी जानते हैं कि ओपीएस स्कीम के लिए किया गया कांग्रेस पार्टी का वादा सरकारी कर्मचारियों के लिए बहुत फायदेमंद था. जाहिर है कि सरकारी कर्मचारी क्यों नहीं कांग्रेस को वोट देते ? पोस्टल बैलेट का इस्तेमाल 99 परसेंट स्टेट गवर्नमेंट के इंप्लाई ही करते हैं जिनकी ड्यूटी चुनाव कराने के लिए लगाई गई होती है. जनता के फैसले पर इस तरह का रिएक्शन एक नेता करे तो समझ में आता है. पर जब पार्टी का अधिकारिक ट्वीटर हैंडल इस तरह की बात करने लगे तो समझ में आ जाता है कि यह मत पूरी पार्टी का ही है. एमपी कांग्रेस के हैंडल ने जनता को संबोधित करते हुए लिखा , ईवीएम जीत गया और आपका मत हार गया.
डीएमके सांसद को भी कांग्रेस के हारने का दर्द
तमिलनाडु में कांग्रेस की सहयोगी पार्टी द्रमुक को भी कांग्रेस की इस हार पर दुख पहुंचा है.क्यो्ंकि उसे भी लगता है कि बीजेपी अब तमिलनाडु में भी जगह बनाने वाली है.
डीएमके सांसद सेंथिल कुमार ने संसद में कहा कि इस देश के लोगों को यह सोचना चाहिए कि बीजेपी की ताकत केवल मुख्य रूप से हिंदी के गढ़ राज्यों में चुनाव जीतना है, जिन्हें हम आम तौर पर ‘गौमूत्र’ राज्य कहते हैं. हालांकि कांग्रेस ने सेंथिल के बयान से खुद को अलग कर लिया है. कांग्रेस सांसद राजीव शुक्ला ने कहा कि डीएमके की राजनीति अलग है. कांग्रेस उनकी राजनीति से सहमत नहीं है. कांग्रेस ‘सनातन धर्म’ और ‘गौमाता’ में भी विश्वास करती है. इस तरह की विभाजनकारी सोच डीएमके लगातार दिखाती रहती है.
बीजेपी को जिन राज्यों ने चुना है उनकी लिट्रेसी रेट को भी जान लीजिए
दक्षिण राज्यों के लिटरेसी रेट का सहारा लेकर कांग्रेस ये साबित करना चाहती है कि उत्तर भारत के अनपढ़ लोग बीजेपी को वोट देते हैं.उत्तर दक्षिण के नाम पर विवाद खड़ा करने वाले जो लोग समझते हैं कि उत्तर भारत में साक्षरता दर कम है उन्हें यह पता होना चाहिए कि अब ऐसा नहीं है . एनएसओ सर्वे 2017 की रिपोर्ट को आधार माने तो उत्तर प्रदेश को छोड़कर हर उन जगहों पर जहां बीजेपी राज कर रही है साक्षरता दर 80 प्रतिशत से ज्यादा ही है. जबकि तेलंगाना में साक्षरता दर 73 प्रतिशत ही है.
-दिल्ली – 89% साक्षरता – (सभी सांसद बीजेपी के)
-त्रिपुरा – 88% बीजेपी
-उत्तराखंड – 88% बीजेपी
-गोवा 87% बीजेपी
-असम 86% बीजेपी
-महाराष्ट्र 85% बीजेपी
-गुजरात 82% बीजेपी
-हरियाणा 80% बीजेपी
-नागालैंड 80% बीजेपी
-मणिपुर 80% बीजेपी
राहुल-सोनिया और इंदिरा गांधी के लिए बड़ा सहारा रहा है साउथ
दरअसल कांग्रेस के लिए दक्षिण भारत का बड़ा सहारा रहा है. जब राहुल गांधी को जिस तर ह आज वायनाड़ ने सहारा दिया है उसी तरह कभी इंदिरा गांधी चिकमंगलूर और मेडक से सहारा मिला था. सोनिया गांधी भी बैल्लारी से चुनाव जीत चुकी है.दरअसल जब जब उत्तर भारत से कांग्रेस को बेरुखी मिलती दक्षिण इनके लिए सहारा बनता रहा है. लेकिन सोचने वाली ये बात है कि दक्षिण की जिन सीटों पर नेहरू परिवार चुनाव लड़ता रहा है उन सीटों का बैकग्राउंड क्या रहा है. वायनाड़ आज भी केरल के सबसे पिछड़े एरिया में गिना जाता है. चिकमंगलूर हो या बेल्लारी भी ऐसी ही जगहें हैं. उत्तर भारत में भी रायबरेली हो या अमेठी ऐसी ही जगहें रही हैं जहां तक मीडिया की पहुंच नहीं होती थी. वहां की जनता भी इतना पिछड़ापन रहा है कि उन्हें राजा में भगवान ही दिखता रहा है. अगर शिक्षा को आधार मानकर मतदाताओं के बीच अपनी लोकप्रियता को आंकना है तो नेहरू परिवार को साउथ दिल्ली या साउथ मुंबई की सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए.
दक्षिण में भी कांग्रेस से बीजेपी मजबूत
हालांकि कांग्रेस का दक्षिण में अधिक लोकप्रिय होने का भ्रम भी टूट चुका है .तेलंगाना विधानसभा चुनाव में बीजेपी को अभी तक नौ सीटें और 13.78% वोट मिले हैं. जो लगातार बढ़ रहा है .उम्मीद है कि 2024 लोकसभा चुनावों में ही पार्टी उल्लेखनीय प्रगित करे.
एक बात और है कि आज की तारीख में बीजेपी के दक्षिण भारत में कांग्रेस से अधिक लोक सभा सांसद हैं. कर्नाटक और तेलंगाना को मिला कर बीजेपी के 29 लोकसभा सांसद हैं. जबकि कांग्रेस के केरल में 15, तमिलनाडु में 8, तेलंगाना में 3 और कर्नाटक तथा पुड्डुचेरी में एक-एक सांसद मिला कर कुल 28 सांसद ही हैं. बीजेपी हाल तक कर्नाटक में सरकार चला रही थी और अभी पुड्डेचरी में गठबंधन सरकार का हिस्सा है.
राजनीतिक विशेषज्ञ यशवंत देशमुख ने उत्तर-दक्षिण तर्क को खारिज करते हुए कहा कि भाजपा कर्नाटक में एक मजबूत खिलाड़ी है और 2024 के लोकसभा चुनाव में वहां बड़ी जीत हासिल करने की संभावना है. “उत्तर-दक्षिण विभाजन का यह सिद्धांत बहुत बकवास है। भाजपा अब तक केवल कर्नाटक में एक प्रमुख खिलाड़ी थी, और उनके लोकसभा 2024 में फिर से उस राज्य को जीतने की संभावना है. केरल में कांग्रेस के बारे में भी यही सच है. हाँ, वे जीत गए हैं आज तेलंगाना, लेकिन जहां तक आंध्र और तमिलनाडु का सवाल है, वे बीजेपी की तरह एक बड़े शून्य हैं, उन्होंने कहा, “सच्चाई यह है कि सभी दक्षिणी क्षेत्रीय खिलाड़ी अपने बल पर हैं, इसलिए नहीं कि वे भाजपा विरोधी या कांग्रेस विरोधी हैं. बिल्कुल उत्तरी क्षेत्रीय खिलाड़ियों की तरह.”
- संयुक्त शिक्षक संघ के पदाधिकारियों ने किया जिला स्तरीय बैठक सह भोज का आयोजन… - December 15, 2025
- आज का राशिफल 15 दिसंबर 2025: जानिए कैसा रहेगा आपका दिन… - December 15, 2025
- गोमर्डा अभ्यारण मल्दा (ब) मे वन्यजीव शांभर की मौत..वाहन की टक्कर से मौत की आशंका..! - December 14, 2025

