बिग ब्रेकिंग: झारखंड से छत्तीसगढ़ में घुसा 24 हाथियों का ग्रुप..दल में नौ बच्चे इसलिए खतरा अधिक…

झारखंड से 24 जंगली हाथियों का बड़ा दल छत्तीसगढ़ में प्रवेश कर गया है। बलरामपुर जिले से लगे झारखंड के बरगढ़ क्षेत्र से तीन दिन पहले छत्तीसगढ़ में घुसे जंगली हाथी चांदो वन परिक्षेत्र में फसलों को नुकसान पहुंचाने के बाद कुसमी वन परिक्षेत्र के जंगली हाथियों के रहवास के अनुकूल क्षेत्र होने तथा खेतों में खड़ी फसल के कारण जंगली हाथी कुछ दिनों तक क्षेत्र में ही विचरण कर सकते हैं।
पहले से ही जंगली हाथियों के समुचित प्रबंधन के लिए ताकत झोंक रहे वन अमले के लिए 24 जंगली हाथियों के नए दल ने परेशानी बढ़ा दी है। जिस क्षेत्र में जंगली हाथियों का दल पहुंचा हैं वहां के लोगों के लिए यह पहला अनुभव है। ऐसे में जानमाल की सुरक्षा को लेकर वन विभाग को अतिरिक्त ताकत झोंकनी पड़ रही है। थोड़ी सी भी लापरवाही के कारण नुकसान को रोक पाना आसान नहीं होगा। चांदो व कुसमी वन परिक्षेत्र के सीमावर्ती इलाके में हाथियों का विचरण नहीं हुआ है। जंगली हाथियों के लिए भी यह क्षेत्र नया है। हाथियों को असुरक्षित तरीके से खदेड़ने अथवा उत्सुकतावश देखने जाना खतरनाक हो सकता है। जंगली हाथियों ने अभी तक फसलों को व्यापक नुकसान पहुंचाया है।
दल में नौ बच्चे इसलिए खतरा अधिक
झारखंड से छत्तीसगढ़ में घुसे 24 जंगली हाथियों में छह नर, नौ मादा व नौ बच्चे हैं। जंगली हाथियों के व्यवहार के अध्ययन से पता चला है कि यदि दल में बच्चे होते हैं तो उन्हीं के अनुरूप न सिर्फ हाथियों का विचरण होता है बल्कि बच्चों की सुरक्षा को लेकर हाथी ज्यादा आक्रामक भी रहते हैं। वन कर्मचारियों ने बताया कि झारखंड के बरगढ़ से बीते 28 नवंबर की रात जंगली हाथियों ने चांदो क्षेत्र के गौतमपुर,परसापानी मे प्रवेश किया था। उसके बाद रहवास के अनुकूल क्षेत्र पाकर जंगली हाथी आगे बढ़ते चले गए हैं। बच्चों के कारण जंगली हाथियों का दल इस क्षेत्र में कई दिनों तक रूक सकता है।
पहले भी घुसे थे हाथी,यहीं के होकर रह गए
90 के दशक में भी अविभाजित बिहार से पहली बार कुसमी क्षेत्र में जंगली हाथी घुसे थे। उस दौरान क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियों को देखने के लिए स्वभाव के अनुरूप एक हाथी आया था। बाद में पूरा दल आ गया था। जंगल,पहाड़,चारा, पानी की पर्याप्त उपलब्धता के कारण हाथी यहीं के होकर रह गए। उस दौरान सिविलदाग गांव में एक जंगली हाथी को पकड़ भी लिया गया था। इस हाथी का नामकरण सिविल बहादुर किया गया था। इसे छत्तीसगढ़ का सबसे उम्रदराज हाथी माना जाता था। अंतिम समय में सिविल बहादुर को रमकोला के हाथी पुर्नवास केंद्र में रखा गया था।
ओडिशा से भी आते-जाते रहे हैं जंगली हाथी छत्तीसगढ़ के
सरगुजा संभाग में ओडिशा के जंगली हाथियों का भी आना-जाना लगा रहता है। ओडिशा से जशपुर जिले में प्रवेश करने वाले हाथी सरगुजा जिले के मैनपाट तक पहुंच जाते हैं। छह से आठ महीने तक मैनपाट क्षेत्र में रहने के बाद हाथियों का दल फिर जशपुर,रायगढ़ जिला से वापस ओडिशा तक चला जाता है। इनमें से कुछ हाथी अब छत्तीसगढ़ के ही होकर रह गए हैं बीट में प्रवेश कर चुके हैं।
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