आदिवासी कन्या आश्रम के जर्जर भवन की छत गिरी,2 बच्ची हुई घायल,अन्य ने भाग कर बचाई जान…

छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में लगातार आदिवासी आवासीय विद्यालय की अव्यवस्था की पोल खुल रही है. कुछ दिन पहले ही जिले के कोंटा ब्लॉक के एर्राबोर में संचालित कन्या आश्रम में एक नाबालिग छात्रा से दुष्कर्म करने का मामला सामने आया था, अब इन आश्रमों की व्यवस्था से जुड़ी बड़ी खबर सामने आई है.
छिंदगढ़ ब्लॉक में संचालित महात्मा गांधी आदिवासी कन्या आश्रम में एक जर्जर भवन की छत गिरने से इसके चपेट में दो बच्ची आ गईं और वहां मौजूद बाकि बच्चे और अधीक्षिका बाल-बाल इस हादसे में बचे. बताया जा रहा है कि यह भवन सालों से जर्जर हालत में है, लेकिन इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. प्रशासन की अनदेखी के चलते कई सालों से छोटे-छोटे बच्चियां इसी जर्जर भवन में रहने को मजबूर हैं. इधर घायल दो बच्चियों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है.
सालों से नए भवन बनाने की की जा रही मांग
छिंदगढ़ में संचालित कन्या आवासीय विद्यालय की अधीक्षिका से मिली जानकारी के मुताबिक छिंदगढ़ ब्लॉक में पिछले कई सालों से महात्मा गांधी आदिवासी कन्या आवासीय विद्यालय का संचालन किया जा रहा है. सोमवार को अधीक्षिका के कमरे में कुछ बच्चियां और अधीक्षिका खुद बैठी हुई थी, अचानक जर्जर हो चुकी भवन की छत भरभरा कर सीधे नीचे गिर गई. यहां दो बच्चियां तखत पर बैठी हुई थीं जिनके सिर पर चोट आई है और बाकी बच्चियों ने तुरंत वहां से भागकर अपनी जान बचाई. अधीक्षिका ने बताया कि कई बार पत्र लिखकर प्रशासन को भवन की जर्जर स्थिति को लेकर अवगत कराया जा चुका है लेकिन अब तक इसके मरम्मत का कार्य नहीं हो सका है. खासकर बारिश के मौसम में हमेशा जर्जर भवन के धराशाई होने का डर बना रहता है. वही सोमवार को अधीक्षिका के कमरे की छत भरभरा कर गिर गई, गनीमत रही कि उस वक्त ज्यादा संख्या में बच्ची उनके कमरे में मौजूद नहीं थे, नहीं तो बड़ा हादसा हो सकता था. दो बच्चियों को चोट आने पर उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहां इलाज के बाद अब उनकी स्थिति ठीक बनी हुई है.
जिले में संचालित सरकारी आश्रमों की स्थिति है दयनीय
दरअसल, 80 सीटों की क्षमता वाले आदिवासी कन्या आश्रम का हाल काफी बुरा हो चुका है और कभी भी बड़ी दुर्घटना होने की संभावना बनी हुई है. पहली कक्षा से लेकर आठवीं कक्षा तक की छोटी-छोटी बच्चियां इस आश्रम में रहकर पढ़ाई करती हैं. इसकी जानकारी होने के बाद भी प्रशासन के अधिकारी नए भवन बनाने या फिर इस पुराने भवन को मरम्मत करने की जहमत तक नहीं उठा रहे है. वही कन्या आश्रम में बिजली की सुविधा का भी काफी बुरा हाल है. पूरे बिजली के तार उलझे हुए हैं कभी भी बरसात के मौसम में करंट से शॉर्ट सर्किट होने की भी संभावना बनी हुई है. ऐसे लचर व्यवस्था में 80 सीटर कन्या आश्रम का संचालन करना अधीक्षिका के लिए हमेशा तनाव भरा रहता है. प्रशासन के अनदेखी के चलते जर्जर भवन में छोटे-छोटे बच्चों को मजबूरन रखना पड़ रहा है. इधर जिम्मेदार अधिकारी भी इस मामले में चुप्पी साध रखे हैं. बताया जा रहा है कि महात्मा गांधी आदिवासी बालक और बालिकाओं के जितने भी आवासीय विद्यालय जिले में संचालित हो रहे हैं सबकी स्थिति काफी दयनीय है. कई भवन जर्जर हालत में है और कई आश्रमों में सुरक्षा के नियमों को ताक में रखकर आश्रमो का संचालन किया जा रहा है. सीसीटीवी कैमरे खराब है तो कई आश्रमों में बच्चों के लिए पेयजल की सुविधा ही नहीं है.
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