छत्तीसगढ़ में क्यों मनाते हैं हरेली त्यौहार..इतिहास विभाग के प्रोफेसर कर्मवीर धुरंधर ने ऐतिहासिकता पर डाला प्रकाश…पढ़कर आप भी हो जाएंगे खुश…

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छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक पहचान में अनेक पर्व -त्यौहारों का सुंदर समन्वय प्राप्त होता है।इन्हीं में से एक अत्यंत प्रिय व प्राचीन पर्व हरेली है, जिसका अर्थ हरियाली अर्थात धरती मईया का हरा भराहोकरकिए गए सुंदर श्रृंगार से हैं। हरेली सावन माह की अमावस्या को मनाया जाता है जो कि वर्तमान समय मेंछत्तीसगढ़ के ग्रामीण जीवन में अत्यंत लोक प्रिय होने के साथ ही कृषक समाज मेंवि शेष महत्व रखता है। यह त्यौहार खेती बाड़ी हरियाली और जीवन में शुभ के प्रतीक के रूप में आज भी पूरे उत्साह सेमनाया जाता है। हरेली पर्व वर्तमान स्वरूप धारण करने से पूर्व अनेक ऐतिहासिक स्वरूपों से युक्त रहा है ।

हरेली त्यौहारके आरंभिक साक्ष्य अत्यंत प्राचीनता से युक्त है इसका आरंभ मानव समाज द्वारा कृषि कार्य के आरंभ के साथ ही दृष्टिगोचर होता है।

आगे जाकर वैदिक कालमें अधर्ववेद के “कृषि सूक्त “में तथा “विष्णु पुराण” में “वर्षारम्भ अनुषा न” के रूप में हरेली पर्वका वर्णन प्राप्त होता है। मौर्यकाल में कौटिल्य के अर्थशास्त्र में वर्ष के प्रारंभ में कृषि यंत्र, हल औजार आदि के रखरखाव, शुद्धि करण वपूजन का वर्णन प्राप्त होता है।

” कर्षक कर्मणि उपकरणानां सम्यक्‌ संस्का र:।” (कृषक को अपने उपकरणों का विधिपूर्वक संस्कार करना चाहिए।)
यह उपकरण संस्कार परंपरा आगे चलकर हरेली जैसे स्वरूप में विकसित हुई।

गुप्त काल में “कृषक महोत्सव”, वर्षरंभ अनुष्ठान और हल पूजनका उल्ले ख पुराने नाटकों व ग्रंथों में प्राप्त होता है। “प्रावृषि कृषका: हलद्वार पूजयन्ति।” (वर्षा ऋतु के आगमन पर कृषक हलद्वार की पूजा करते हैं।)

भारत के चक्रवर्ती सम्राट के दबबारी कवि बाणभट्ट की रचनाओं में वर्षा ऋतु के स्वागत और हरियाली की प्रशंसा के प्रसंग है। सर्व भूमितलं हरितवसनमिव बभौ।” (भूमि पर मानो हरियाली का वस्त्र बिछ गया हो।) इस काल में “ऋतु पर्व” बड़े सामुदायिक अनुष्ठान है जो संभवत: हरेली जैसी लोक परंपरा की जड़ है।

छत्तीसगढ़ के कलचुरी वंशके विभिन्न ताम्रपत्रों में “वर्षारम्भ महोत्सव” और “कृषक सभा” का उल्लेख प्राप्त हुआ है 1″ … कर्षकै: हल-युगलादीनां स्नाप्य पूजन कृत्वा… “ (कृषकों ने हल और युगल बैलों को स्नान कराकर पूजन किया |)

हरेली का छत्तीसगढ़ में वर्तमान स्वरूप व विशिष्टता :

इस दिनकिसान कृषि यंत्रों और गायबैलों की पूजा करते हैं , उन्हें लोंदी खिलाया जाता है,तत्पश्चात कृषि कार्य आरंभ करते हैं। यह मान्यता है कि इससे पूरे वर्ष कृषि उपकरण और पशु स्वस्थ व शक्ति शाली बने रहते हैं।

नीम को स्वास्थ्य वर्धक अशुभ शक्तियों को दूर करने वाला, कीड़े – मकोड़ों व बीमारियों को दूर करने वाला माना जाता हैजिसके कारण हरेली के दिन घरों के मुख्य द्वार पर नीम की डालियां सजाई जाती है। साथ ही आज के दिन गांवों में बैगा गांव की सुरक्षा के लिएतंत्र साथना करते है। प्राचीन समय में गलियों में वर्षा ऋतु के कारण होने वाले कीचड़ से बचने के लिए गेड़ी (लकड़ी का विशेष उपकरण ) पर चढ़करचलने की अनूठी परंपरा विकसित हुई जो की वर्तमान में बच्चों, विशेष आकर्षण का केंद्र होती है। गांव में गेड़ी दौड़ प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती है।

हरेली हरियाली के स्वागत का पर्व है

भारतीय संस्कृति में प्राचीन समय से ही कृषि यंत्रों और हरियाली पर्वों का पूजन एक स्थाई परंपरा थी यही परंपराएं हरेली त्यौहार के रूप में विकसि त हुई जिसे छत्तीसगढ़ की संस्कृति ने विशिष्ट रूप देकर जीवित रखा तथा एक नई पहचान दी।

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