सारंगढ़ : सारंगपुर, सारनगढ़ होते कैसे बना सारंगढ़, नामकरण के पीछे छिपा है दिलचस्प कहानी, पढ़िए पुरी कहानी…

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सारंगढ़। सारंगढ़ रियासत स्वतंत्रता से पूर्व देशी रियासतों में से एक था। भारत की देशी रियासतों में सारंगढ़ रियासत अपेक्षाकृत छोटी रियासत होने के बावजूद भोगोलिक, राजनेतिक, सांस्कृतिक ओर पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य का नया जिला सारंगढ़ के नामकरण के पीछे बेहद दिलचस्प किस्सा है। सारंगढ़ अपने नामकरण में रोचक तथ्य समाहित किए हुए है। सारंगढ़ को पहले सारंगपुर कहा जाता था। सारंगढ़ में गोंड राजाओं के आने से पूर्व सारंगढ़ सारंगपुर कहलाता था। सारंगपुर धीरे धीरे सारनगढ़ कहलाने लगा और आज सारनगढ़ सारंगढ़ लिखा जाने लगा है।

कटंण बांस की अधिकता-

सारंग के अनेक अर्थ हैं। यहां पर सारंग का अर्थ बांस भी है। कहा जाता है कि प्राचीन समय में यहां काफी जंगल हुआ करता था। लोगों की जरूरत की वस्तुएं इन्हीं जंगलों के माध्यम से पूरी हुआ करती थी। सारंग का अर्थ “बांस’ और गढ़ का अर्थ ‘किला’ होता है। इसी कारण इस स्थल का नाम सारंगढ़ पड़ा यानि “बांस का किला’। यहां कटंग बांस की एक प्रजाति घनघोर जंगल में इतने लंबे थे कि लंबाई आसमान को छूते हुए दिखाई देते थे। दीवान प्रताप सिंह साराडीह से अपनी राजधानी छोड़कर सारंगढ़ किला में अपनी राजधानी स्थापित किया। यहीं पर उनका किला घिरा हुआ था। यहां बांस की अधिकता के कारण लोग अपनी जरूरत की चीजों के लिए ज्यादातर बांस का ही उपयोग करते थे। किला में बांस से बनी पाटी ओर कटंग बांस का म्यार लगा हुआ था। छप्पर भी बांस की बनायी जाती थी।

सारंग का अर्थ चित्रमृज (हिरण) भी –

सारंग का एक अन्य अर्थ चित्रमृग अर्थात्‌ हिरण भी होता है। कहते हैं कि हिरणों के अधिकाय से यह क्षेत्र सारंगढ़ कहा जाने लगा हो। साहित्यकार डॉ. विनय कुमार पाठक कहते हें कि सारंग नामक पक्षी से सारंगढ़ का नामकरण माना है। सारंग नामक पक्षी की बहुलता के आधार पर इसका नाम भी उपयुक्त प्रतीत होता है।

पक्षी तक पार नहीं कर पाते थे बांस का जंगल –

यहां घोधरा नाला काफी प्रसिद्ध रहा, इसी के किनारे कटंग बांस का जंगल था। इसे पक्षी तक पार नहीं कर पाते थे। लोगों का कहना है कि जो यहां जाता था, वो वापस कभी नहीं आता था। इसे पास करना इंसानों के बस की बात नहीं थी।

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