सारंगढ़

कलयुग मे मानव का कल्याण सिर्फ भागवत से संभव – महराज अमन

भटगांव के देवांगन भवन में चल रहे श्रीमदभागवत कथा ज्ञानयज्ञ वृंदावन से आये अमन दत्त महराज ने सति चरित्र, ध्रुव चरित्र व जड़भरत की कथा सुनाते हुए श्रोताओं को बताया कि – उत्तानपाद की सुनीति पहली पत्नी थीं। जिसका पुत्र ध्रुव था सुनीति बड़ी रानी थी, लेकिन राजा सुनीति के बजाय सुरूचि और उसके पुत्र को ज्यादा प्रेम करता था। तभी वहा सुरूचि आ गई अपनी सौतन के पुत्र ध्रुव को गोद मे बैठा देखकर उसके मन मे जलन होने लगी तब उसने ध्रुव को गोद मे से उतारकर अपने पुत्र को गोद मे बैठाते हुए कहा राजा की गोद मे वही बालक बैठ सकता है व राजसिंहासन का भी अधिकारी हो सकता है जो मेरे गर्भ से जन्मा हो। तू मेरे गर्भ से नही जन्मा है, यदि तेरी इच्छा राजसिंहासन प्राप्त करने की है तो भगवान नारायण का भजन कर ।उनकी कृपा से जब तू मेरे गर्भ से उत्पन्न होगा तभी सिहांसन प्राप्त कर पाएगा। पांच साल का अबोध बालक ध्रुव सहम कर रोते हुए अपनी मां सुनीति के पास गया और उसने अपनी मां से उसके साथ हुए व्यवहार के बारे मे बताया। मां ने कहा बेटा सुरूचि तेरी सौतेली मां है तेरे पिता उससे अधिक प्रेम करते है, इसी कारण वह हम दोनो से दूर हो गए है।अब हमें कोई सहारा नही रह गया है। हमारें सहारा तो जगतपति नारायण ही है। नारायण के अतिरिक्त अब हमारे दुख को दूर करने वाला कोई दूसरा बचा नही इस बात को सुनकर बालक ध्रुव ने भगवान नारायण की तपस्या करने जंगल की ओर रवाना हो गए। रास्ते मे उसे नारद जी मिले नारद मुनि ने उससे कहा बेटा तुम घर जाओ तुम्हारे माता पिता चिंता करते होंगे। लेकिन बालक ध्रुव नही माना और कहा कि – मै नारायण की भक्ति करने जा रहा हूं तब नारद मुनि ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र की दीक्षा दी। वह बालक यमुना नदी के तट पर मधुबन मे इस मंत्र का जाप करने लगा। फिर नारद मुनि ने उसके पिता उत्तान पाद के पास गए तो उत्तान पाद ने कहा कि मैने स्त्री के वश मे आकर अपने बालक को घर छोड़कर जाने दिया। मुझे इसका बहुत दुख है। फिर नारद जी ने कहा कि – अब आप उस बालक की चिंता ना करे,उसका रखवाला तो अब भगवान नारायण स्वयं है। भविष्य मे उसकी कीर्ति चारों ओर फैलेगी। उधर बालक की कठोर तप से अल्पकाल मे भगवान नारायण प्रसन्न हो गए और उन्होंने दर्शन देकर कहा, हे बालक मै तेरे अंतर्मन की व्यथा और इच्छा को जानता हूं । तेरी सभी इच्छाएं पूर्ण होगी। भक्त ध्रुव को परम पद की प्राप्ति हुई जिसका चरित्र तीनों लोक मे विख्यात है। जो नारायण की भक्ति करता है उसे परम पद की प्राप्ति होती है।

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