रोचक खबर

इस शंख से भगवान शिव ने समुद्र मंथन के समय पिया था विष! साल मे 1 बार ही आता है उपर, बाकी समय रहता है पानी के नीचे….

सनातन धर्म में कई कथाओं का वर्णन किया गया है. इनमें से समुद्र मंथन की कथा सबसे अधिक प्रसिद्ध है. इस कथा से लगभग सभी वाकिफ हैं. समुद्र मंथन के दौरान ही हलाहल विष निकला था, जिसे भगवान शिव ने पिया था.
देवता,असुर और समस्त सृष्टि की रक्षा के लिए शिव भगवान ने ऐसा किया था.

वैसे तो शिव जी को कई नामों से जाना जाता है, लेकिन विष पीने के चलते उनका नाम नीलकण्ठ भी पड़ा. विष पीने चलते भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया था, जिसके चलते उनका नाम नीलकण्ठ पड़ा. समुद्र मंथन में समय समुद्र को मथने के लिए मंदरांचल पर्वत का प्रयोग किया गया था, मंदार पर्वत आज भी बिहार के भागलपुर के निकट बांका जिला में स्थित है.

यह पर्वत 700 फीट ऊंचा है. पौराणिक कथाओं की मानें तो देवताओं ने अमृत प्राप्ति के लिए मंदार पर्वत से ही समुद्र मंथन किया था, जिसमें विष के साथ साथ 14 रत्न निकले थे. कहा ये भी जाता है कि समुद्र के दौरान शिव ने विष को पीने के लिए शंख का प्रयोग किया था जो आज भी यहां मौजूद है.

मंदार पर्वत पर आज भी ये शंख कुंड स्थित है. बताया जाता है इस कुंड में आज भी ये शंख मौजूद है और ये साल में एक बार यानी शिवरात्रि के दिन ऊपर आता है. बाकी दिन ये पानी के अंदर ही रहता है. इसे देखने के लिए लोग दूर दूर ये इस दिन यहां आते हैं.

कहा ये भी जाता है कि भगवान विष्णु ने मधुकैटभ राक्षस को पराजित कर उसे इसी विशाल मंदार के नीचे दबा दिया था. पौराणिक कथा कि मानें तो ये लड़ाई दस हजार साल तक चली थी.

कथाओं की मानें तो समुद्र मंथन के दौरान रस्सी की जगह नाग को प्रयोग किया गया था. जिसके साक्ष्य आज भी इस पहाड़ पर देखने को मिलते हैं. यहां आज भी इसकी रगड़ के निशान मौजूद हैं. पर्वत की तराई में सीता कुंड भी मौजूद है. मकर संक्रांति के अवसर यहां हर साल कई लोग स्नान करने आते हैं. कथाओं में इस कुंड को लेकर भी कई तरह की कहानियों का वर्णन है. एक कथा ये भी है कि जब राम वनवास के लिए जा रहे थे तो वो उस दौरान यहां रुके थे और यहीं पर उन्होंने माता सीता ने भगवान भास्कर की उपासना की थी.

डिस्क्लेमर: यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं. raigarhtimes. in इसकी पुष्टि नहीं करता. इसके लिए किसी एक्सपर्ट की सलाह अवश्य लें.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *